Guest Author : Shanti Bapna
जब उत्तर प्रदेश में मुख्य-मंत्री श्री योगी आदित्यनाथ को गर्व पूर्वक टीवी पर ये घोषणा करते हुए देखा की भगवान् राम की 100 फूट की भव्य मूर्ति वह अयोध्या की सरयू नदी पर स्थापित करेंगे तथा इसी प्रकार की छोटी बड़ी मूर्तियाँ प्रदेश के अन्य स्थानों पर भी स्थापित की जाएंगी तो हिंदु धर्म की इस परिकल्पना पर मन व्यथित हो उठा.
अरे ! यह कैसा हिंदु धर्म जो मानव धर्म से अपने आप को अलग कर एक ही सांचे में ढालने का प्रयत्न कर रहा है. काश! हम मंदिर मूर्तियों से पहले अपना मानव धर्म पूरा करते. देश के हर व्यक्ति को सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से सुरक्षित बनाते, हर व्यक्ति के कल्याण के लिए देश के एक एक पैसे का सदुपयोग करते.
ज्ञानी योगीजी आशा करती हूँ इतना तो जानते ही होंगे ” भूखे पेट न भजन गोपाला”. सरकार को मंदिर और मस्जिद की पड़ी है जब की देश के हज़ारों-हजारों बच्चे इंसानी जीवन जीने को तरस रहे हैं, किसी तरह भी मेहनत कर डिग्री पाने के बाद भी रोज़गार को भटक रहे हैं. इतना ही नहीं कुछ तो इंटरव्यू मैं सेलेक्टे होकर भी वर्षों से नौकरी की प्रतीक्षा में अटके हैं. ऐसे हालात में इनमे से कुछ बच्चे व युवा हताशा और निराशा के शिकार हो चोरी-चकारी, लूट-खसोट, एंव नशे की लत में पड़ अपना जीवन ही बर्बाद नहीं करते बल्कि देश, समाज, परिवार के लिए नासूर बन जाते हैं.
मेरी तो सरकार से, नेताओं से यही विनती है की वह ज़मीनी हकीकत को पहचानें, समझें. कोरी बातों से देश का विकास नहीं होता, जनता का भला नहीं होता. आँखें मूंदने से काम नहीं चलेगा. पहले सरकारों को ये समझना होगा की हर व्यक्ति की मूलभूत आवशाक्ताओं को वे किस प्रकार पूरी कर सकते हैं कि देश का हर बच्चा शिक्षित होकर देश के विकास में योगदान दे सके तथा हर परिवार इज्ज़त से दो जून की रोटी खा सके. जब तक हमारे नेता, हमारी सरकारें यह नहीं समझ पाएंगी कि मानव धर्म हर धर्म से ऊँचा है तब तक ये भव्य मूर्तियाँ, मंदिर, मस्जिद, चौबारे सभी बेमानी हैं. तब स्तिथि कमोवेश यही होगी ” घर में नहीं दानें, अम्मा चली भुनानें” कहूँ तो गलत नहीं होगा.
I agreed with each word of Mrs Bapna ji said in this editorial.